बुनकरोंकी धरोहर
मैं पिछले कुछ अरसेसे विविध NGOs के साथ मिलके काम कर रहीं हूँ। और कुछ नहीं तो कमसे कम लोक जाग्रुतिका। दुनियामे हमारे बुनकर बेमिसाल हैं। आज हालत ऐसे हो गए हैं, की लोकाश्रयके अभावसे इनपे आत्महत्या की बारी आ गई है। कई बुनकर पिछले ५/६ वर्षोंमे आर्थिक परेशानीके रहते भारतने खो दिए हैं। इन बुनकर तथा हाथसे कढाई करनेवाले अन्य कारीगरों के लिए कई सेवाभावी संस्थाएँ काम कर रहीं हैं। उनमेसे कुछ बेहतरीन कार्य कर रहीं हैं। मिसालके तौरपर SEWA( self employed women's association), दस्तकार, बनास क्राफ्ट , पारम्पारिक टेक्सटाइल, पारम्पारिक कारीगर, कलारक्षा और अन्य कई। मैंने शुरुआत तो ख़ुद अपनेसे की और कई बरसों से उसे अमल्मे ला रही हूँ। अपना कपडा या अन्य वस्त्र तथा जोभी वस्तुएँ ऐसे प्रदर्शनियों मे उपलब्ध होती हैं, मै कभी बड़ी दुकानों से इनकी ख़रीदारी नही करती। सीधा कारीगारसे ख़रीदना चाहती हूँ। मक़सद ये की, उस वस्तू से होनेवाला मुनाफ़ा सीधे उनके हाथ जाय और वे प्रोत्स्ताहित हों। यही वजह है की बरसों से मै केवल हाथ करघेसे बुने वस्त्र पेहेनती आयी हूँ। ऐसीही साडियों मे ली कुछ तस्वीरें यहाँ पोस्ट कर रहीं हूँ। बताना चाहती हूँ, कि कितनी बेमिसाल बुनाई है ये ! केवल सस्ते कपडेके चक्करमे हम परदेसी बुनत का कपडा ना खरीदें, ये मेरी हर किसी से हाथ जोडके बिनती है। और सच पूछो तो ये बुनकर इतना सस्ता बेचते हैं, की उनपे रेहेम आ जाता है ! मै ख़ुद जानती हूँ कि हाथ करघेको बुनाई के लिए तैयार करनेमे कितना समय लगता है...इतना समय बुनाई मेभी नही लगता...उसपे अगर कढ़ाई हो तो सोचिये और कितनी मेहनत लगती होगी !जानकारी की वजह ये कि हाथसे कढ़ाई मै खुदभी करती हूँ !अन्यत्र " फायबर आर्ट", इस शीर्षक के तहेत, कुछ ऐसी तस्वीरें भी पोस्ट करने जा रही हूँ, जहाँ मेरी कलाके कुछ नमूने सादर किए हैं। 4 टिप्पणियाँ
अच्छी पोस्ट ।
aapka pyiyas sarahneey hai
aap ek prakashpunj ki tarah andheron ko roshni se nahlane ka kaam kar rahii hai ..is kaam mai bhagvaan aapki madad kare har kadam par
apne blog ka background color change karengii to or accha lagega its my opnion ho sakta hai galat ho.
mainstream se alag mere shahar ke bunkaro ke liye maine bhi kai stories likhi but aapke article se kuch or idia mila hai thanks for such a wonderful article
pls remove word varification