गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

जा, उड़ जारे पंछी ! ४

(माँ का अपनी बेटीसे मूक संभाषण.)

सितम्बर के माह मे तेरे पिता का महाराष्ट्र के डीजीपी के हैसियतसे बढोत्री हुई। इत्तेफाक़न उस समय मै अस्पतालमे थी और इस खुशीके मौकेका घरपे रहके आनंद न उठा सकी !पर सपनेभी जो बात मुझे सच न लगती वो बात हो गयी!हमें सरकारकी ओरसे वही फ्लैट मिला जिसमे हम १० वर्ष पूर्व मुंबई की पोस्टिंग मे रह चुके थे...वही बेहद प्यारे पड़ोसी, जिन्हें मै अपना हिदी कथा संग्रह समर्पित कर चुकी थी!!हमें इस फ्लैट मे रहनेका ७ माह से ज्यादा मौक़ा नही मिलनेवाला था, लेकिन मेरी खुशीकी कोई सीमा न थी!!हम पड़ोसियों के दरवाज़े हमेशा एक दूसरेके लिए खुलेही रहा करते थे!

अस्पताल से लौटतेही मैंने अपना साजों -सामाँ नए फ्लैट मे सजा लिया। कुल दो दिनही गुज़रे थे कि, एक खबरने मुझे हिला दिया। हमारे पड़ोसी, जो IAS के अफसर थे,और निहायत अच्छे इंसान उन्हें कैंसर का निदान हो गया। पूरे परिवार ने इस बातको बोहोत बहादुरी से स्वीकारा। उनकी जब शल्य चिकित्छा हुई तब उनके घर लौटने से पहले,मैंने उस घरको भी उसी तरह सजाके रखा,जैसे वो घरभी शादीका हो!!
वे घर आए तो एक बच्चे की तरह खुशी से उछल पड़े !मैंने और उनकी पत्नी, ममता ने मिलके लिफ्ट के आगेकी कॉमन लैंडिंग भी ऐसे सजायी के आनेवाले को समझ ना आए किस फ्लैट के लिए मुड़ना है! छोटी-सी बैठक, गमले,फूलोंके हार, निरंजन, रंगोली,.....पता नही और क्या कुछ!!उनके घरके लिए मैंने वोल पीसेस भी बनाये थे। नेम प्लेट भी एकदम अलग हटके बनायी। कॉमन लैंडिंग मे भी मैंने फ्रेम किए हुए वाल्पीसेस सजा दिए। ममता ने अपनी माँ की पुरानी ज़रीदार साडियोंको सोफा के दोनों और सजा दिया। कभी भी इससे पहले नए घरमे समान हिलानेमे मुझे इतनी खुशी नही हुई थी जितनी के तब! सिर्फ़ दिलमे एक कसक थी....रमेशजी का कैंसर!!उन्हें तेरे ब्याह्का कितना अरमान था। ऐसी हालत मेभी वो बंगलौर आनेकी तैयारी कर रहे थे। महारष्ट्र मे विधानसभाका सर्दियोंका सेशन नागपूर मे होता है। वे सीधा वहीं से आनेवाले थे। हम सोचते क्या हैं और होता क्या है....!वो दोनों हमारे घर तेरी मेहेंदीके समारोह के लिएभी न आ सके!उनका कीमोका सेशन था उस दिन!मुंबई के स्वागत समारोह मेभी आ न सके क्योंकि नागपूर का सेशन एक दिन देरीसे ख़त्म हुआ। तेरे ब्याह्के कुछ ही दिनोबाद उनके लिवर का भी ओपरेशन कराना पडा। आज ठीक एक वर्ष पूर्व उस अत्यन्त बहादुर और नेक इंसान का देहांत हो गया। खैर! उनकी बात चली तो मै कहाँ से कहाँ बह निकली....लौटती हूँ गृहसज्जा की ओर...
घर हर तरहसे,हर किस्म से श्रृंगारित करने लगी मै। शादीके दिनोमे मेहमान आयेंगे, तू आयेगी, बल्कि तुम दोनों आयोगे इस लिहाज़ से घर साफ़- सुंदर दिखना था। क्या करुँ ,क्या न करूँ....हाँ लिफ्टके प्रवेशद्वारपे जहाँ servant क्वार्टर की ओर सीढीयाँ जाती थी , वहांभी परदे लग गए...बीछो-बीछ खूबसूरत-सी दरी डाली गयी...शुभेन्द्र तथा पुन्यश्री , ममताके दोनों बच्चे , उन्हेभी उतनाही उत्साह था। मेरे भी सरपे एक जुनून सवार था। तेरे पिता तो नागपूर मे थे...काफी जिम्मेदारियाँ मुझपे आन पडी थी। आमंत्रितों की फेहरिस्त बनाना...हर शेहेर्मे किसी एक नज़दीकी दोस्तको अपने हाथोंसे पत्रिका बाँट नेकी बिनती करना...उसी समय,उनको तोह्फेभी पोहोचा देना...बंगलोर की BSF मेस के कैम्पस मे किसको कहाँ ठहराना ...किसकी किसके साथ पटेगी ये सब सोंच -विचारके!! जबकी मेस मैंने देखीही नही थी... सब कागज़ के प्लान देखके तय करना था!!
और तेरे आनेका दिन करीब आने लगा....जिस दिन तू आयेगी...उस दिन तुम्हारे कमरेमे कौनसा बेड कवर बिछेगा??कौनसे परदे लगेंगे??कौनसा गुलदान,कौनसे फूल??पीले गुलाब, पीली सेवंती, साथ लेडीस लैस...यहाँ सिरामिक का गुलदान,यहाँ,पीतल का,यहाँ ताम्बेका...ये राजस्थानी वंदनवार। कब दिन निकलता और कब डूबता पताही नही चलता।
क्रमश

1 टिप्पणियाँ:

DR.ANURAG said...

कहते है ना एक मौन भी कभी कभी किसी संवाद से बेहतर होता है.....आपका मूक संवाद भी बेहद भावुक ओए सच्चा है.....

1 टिप्पणी:

  1. aapne apne maan ke saare udgaar undel kar rakh diya hai apni rachnaon mein, aapki bhavnaon ka sagar hilorein leta hua saaf dikhta hai, uski lahron ke chand cheetein ham par bhi gire hain, aapke bhav hamare saath ho liye hain...
    bahut sundar abhivyakti...

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